देशी उपचार
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Friday, March 11, 2016
Sunday, December 11, 2011
ववासीर और रक्तस्राव की स्वानुभूत कारगार दवा
गुदामार्ग से रक्तश्राव, खूनी और बादी दोनों प्रकार के बवासीर में ये औधषि कारगर है। ये औषधि भी स्वानुभूत है। वैसे इस औधषि के बारे में बचपन से ही जानता था। कई लोगों को आजमाने के लिए भी कहा, लेकिन किसी ने परिणाम नहीं बताया। अब औषधि स्व-परीक्षित है। इस औषधि पर शंका करने की मेरी वजह थी, इसकी सरलता और सर्वउपलब्धता। खुद ही देखिए इतनी सरल है ये औषधि--
सूखे नारियल की जटा, जिससे रस्सी, चटाई आदि बनाते हैं। इस भूरे जटा को जलाकर राख बना लें और इसे अच्छी तरह छान लें। इस छनी हुई जटा-भष्म में तीन चम्मच निकालें और एक-एक चम्मच की पुड़िया बनाएं।
एक पुड़िया जटा-भष्म को मीठे दही या छाछ(जो खट्टा नहीं हो) में मिलाकर एकबार ले लें। ववासीर जड़मूल से नष्ट हो जाएगा। जरूरत पड़े तो दोबारा भी इस्तेमाल किया जा सकता है। वैसे दुबारा इस्तेमाल की जरूरत नहीं पड़ती है।
हां, ववासीर में खट्टे, मसालेदार, चटपटा खाना से परहेज करना पड़ता है।
ये दवा पुराने से पुराने और भयंकर से भयंकर ववासीर में लाभप्रद है।
ये औषधि श्वेत प्रदर और रंग-प्रदर में भी समान रूप से गुणकारी है।
रक्तश्राव, हैजा, वमन, हिचकी में भी इसे लाभकारी माना गया है।
खांसी की अचूक दवा
सामाग्री-
- दालचीनी- थोड़ी मात्रा
- शहद- आधा चम्मच
दालचीनी को पूरी तरह पीसकर पाउडर बना लें। बायीं हाथ की हथेली पर करीब आधा चम्मच शहद लेकर उसके ऊपर दालचीनी (दो चुटकी भर) डालें और दायें हाथ की अंगुली से अच्छी तरह मिलाएं और उसे चाट जाएं।
परिणाम- दो से तीन मिनट में खांसी जाती रहेगी। दोबारा खांसी हो तो इस प्रयोग को दोबारा आजमा सकते हैं।
Sunday, January 10, 2010
ब्रह्मचर्य की महिमा
प्रार्थना- मनस्येकं, वचनस्येकं, कर्मस्येकं महात्मानां
मनस्यन्यद, वचनस्यन्यद, कमस्यन्यद दुरात्मानां
जिनके मन, वचन और कर्म समान हों, उन्हें महात्मा जानिए यानी महात्मा जो सोचता है, वही बोलता है और वही करता है. वहीं दुरात्मा सोचता कुछ है, बोलता कुछ अलग है और करता कुछ और ही है.
आप महात्मा बनें. जीवन के प्रथम अवस्था(इसे आप छोटा मत बनाएं, यानी इसे कम से कम पच्चीस साल का माने, इसी के अनुसार आपकी आयु होगी) में आप मन, वचन और क्रम से ब्रह्मचर्य का पालन करें. किसी नीम-हकीम(सड़क-छाप सेक्सोलॉजिस्ट) के चक्कर में पड़कर वीर्य को नष्ट मत करें. मैं किसी सिद्धांत या परंपरा की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि एक प्रायोगिक सत्य की बात कर रहा हूं कि जीवन के प्रथमावस्था में वीर्य नष्ट करने से आपका जीवन नष्ट होता है. इसलिए इसको बचाएं.
सनातन संस्कृति में जीवन को चार प्रस्थानों में बांटा गया है- 1. बाल्यावस्था 2. युवावस्था 3. प्रौढावस्था 4. वृद्धावस्था
जीवन की प्रथमावस्था वीर्यरक्षण के नियमित है. यहां आप वीर्य का संचयन करें.
कहा गया है कि शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम.
अर्थात् शरीर धर्म का सर्वश्रेष्ठ साधन.
Sunday, January 3, 2010
स्वास्थ्य संबंधी एक पुरानी कहावत
- मोटी दातुन जो करे, नित उठ हर्रे खाय।
बासी पानी जो पीये, ता घर वैद्य न जाय।।
यानी, जो व्यक्ति मोटी दातुन करता है, सवेरे हर्रे खाता है और वासी पानी पीता है उसके घर वैद्य कभी नहीं जाता है.